लहसुनिया

वैदूर्य या लहसुनिया किसे धारण करना चाहिए? वैदूर्य केतु का रत्न है। केतु भी एक छाया ग्रह है और उसकी अपनी कोई राशि नहीं है। अतः केतु जब लग्न, केन्द्र, त्रिकोण या तृतीय, षष्ठ तथाएकादश भाव में स्थित हो तो केतु की महादशा में वैदूर्य धारण करने से लाभ होता है। यदि केतु द्वितीय सप्तम, अष्टम और द्वादश भाव में हो तो यह रत्न नहीं धारण करना चाहिए ।

 

घारण विधि चाँदी की अंगूठी में शनिवार को तैयार कराकर, विधिपूर्वक उसकी उपासना जपादि करें और फिर श्रद्धा सहित उसको अर्द्ध रात्रि के समय मध्यमा या कनिष्ठिका अंगुली में धारण करें। मंत्र ॐ के केतवे नमः । निम्नलिखित केतु के मंत्र की जप संख्या १७००० है। अपनि वजन के अनुसार 10 वां हिसा पर रत्ती जैसे कि 60 KG वजन हो तो 6 स्ती धारण करना होना चाहिए।

धारण विधि रत्न अँगूठी में इस प्रकार जड़ा जाये कि वह त्वचा को स्पर्श करे। ऐसो अँगूठी को Touching ring कहते हैं। अँगूठो शुक्ल पक्ष के किसी रविवार के दिन सूर्योदय के समय धारण करनी चाहिये । धारण करने से पूर्व अँगूठी को कच्चे दूध या गंगाजल में डुबोकर रखना चाहिये । फिर उसको शुद्ध जल से स्नान कराकर पुष्प, चन्दनऔर धूपबत्ती से उसकी उपासना करनी चाहिए

 

 

वैदूर्य के बदल में स्फटिक वर्ग का लहसुनिया (Cat’s Eye) या दरियाई लहसुनिया (Tiger’s Eye) पहना जा सकता है। कुछ विद्वानों का मत है कि चन्द्रकान्त (Moon Stone) वैदूर्य के बदले में धारण किया जा सकता है। परन्तु हम इस मत से सहमत नहीं हैं। जब चन्द्रकान्त चन्द्र का रत्न है तो उसके शत्रु केतु का रत्न वह कैसे बनाया जा सकता है।

 

परन्तु सावधान । केतु के रत्न के साथ माणिक्य, मूंगा, मोती और पीला पुखराज धारण नहीं करना चाहिए ।

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