रत्नों के सम्बन्ध में सबसे महत्त्वपूर्ण बात

संसार के प्रत्येक भाग में रत्नों के प्रति आकर्षण प्राचीन काल से ही चला आया है। रत्न अपने चित्ताकर्षक रंग तथा ज्वलंत आभा के कारण बरबस मन को मोह लेते हैं और प्रकृति की यह देन संसार में लगभग किसी न किसी अंश में सब ही देशों में प्राप्त है। रत्न केवल आभूषणों की ही शोभा नहीं बढ़ाते, परन्तु ऐसा विश्वास है कि उनमें दैविक शक्ति भी निहित है और इसके कारण भी रत्नों के प्रति जनसाधारण का आकर्षण है। इसमें भी जरा संदेह नहीं है कि रोग-निवारण में रत्नों का उपयोग प्राचीन काल से प्रचलित है और उनमें रोग निवारण की शक्ति भी है।

ज्योतिषमें रत्नोंकी भी विशेष महिमा है। रत्नोंकी चमत्कारी शक्तिका सम्बन्ध आकाशीय ग्रहोंसे है। प्रत्येक ग्रहमें भिन्न-भिन्न प्रकारके प्राकृतिक गुण होते हैं। अनुभवसे यह पता चलता है कि ग्रहविशेष और रत्नविशेषकी प्रकृतिमें भारी गुणसाम्य है। इस प्रकार ये दोनों समानधर्मा हैं। यथा-सूर्य और माणिक्य, चन्द्र और मोती, मंगल और मूँगा, बुध और पन्ना, गुरु और पुखराज, शुक्र और हीरा, शनि और नीलम, राहु और गोमेद, केतु और लहसुनिया आदिमें गुणसाम्य है। स्वाभाविक बात यह है कि ग्रहोंकी रश्मियाँ अपनी तरहके गुणवाले रत्नोंकी ओर स्वतः आकर्षित होती हैं।

जातकके जन्मकालिक ग्रहोंकी स्थितिके आधारपर नि शुभाशुभका निर्धारण किया जाता है और इन्हीं शुभाशुभ क ग्रहोंके अनुसार धारणीय रत्नोंका निर्धारण होता है। जो क रत्न एक व्यक्तिके लिये अनुकूल हो, वह दूसरे व्यक्तिके लिये प्रतिकूल भी हो सकता है। अतः उपयुक्त रत्नका चुनाव किसी पारंगत ज्योतिषाचार्य (दैवज्ञ)की सलाहसे किया जाना उचित है। रत्न तीन प्रकारसे प्रभाव डालते हैं-१-शुभ कर्मोंके भोगमें आनेवाली बाधाओंको हटाना, २-अशुभ ग्रहोंके प्रभावसे रक्षा करना तथा ३-सात्त्विक, परंतु दुर्बल ग्रहोंमें अतिरिक्त बलकी वृद्धि करना।

 

जैसे एक छतरी आनेवाली बरसातको रोक नहीं सकती, परंतु व्यक्तिको बरसातके पानीसे बचा सकती है। इसी प्रकार रत्नके धारण करनेसे ग्रहोंके दुष्प्रभावसे यथासाध्य रक्षा होती है।

रत्नों की संख्या काफी बड़ी है, परन्तु भारत में जौहरियों ने विशेष मान्यता केवल ८४ रत्नों को दी है। इन ८४ रत्नों में से ह माणिक्य, मोती, प्रवाल (मूंगा) पन्ना, पुष्पराग (पुखराज), हीरा, नीलम, गोमेद और वैदूर्यमणि (लहसुनिया) नवरत्न की श्रेणी में प्रतिष्ठित हैं। इन नवरत्नों में से भी ५ रत्न यथा माणिक्य, मोती, हीरा, नीलम और पन्ना को एक विशिष्ट स्थान प्राप्त है और वे महारत्न माने जाते हैं, शेष केवल रत्न । इन नवरत्नों के अतिरक्त जो रत्न हैं उन्हें उपरत्न माना जाता है। परन्तु शोभा और मूल्य में कुछ उपरत्न कहलाने वाले रत्न कितने ही नवरत्नों की गणना में आये रत्नों की आभा से कम नहीं होते। कठोरता, टिकाऊपन, दुर्ल- भता, चमक, दड़क, पारदर्शिता या पारमसिकता में वे रत्न किसी प्रकार पीछे नहीं हैं। हम नीचे, मान्यता के अनुसार, ८४ रत्नों की सूची तथा उनका अत्यन्त संक्षिप्त परिचय देते हैं।

में प्रचुर मात्रा में जानकारी दें।

 

रत्नों के सम्बन्ध में सबसे महत्त्वपूर्ण बात जानने की यह है कि गिने हुए कुछ रत्नों के अतिरिक्त सब खनिज पदार्थ हैं और भूगर्भ से प्राप्त होते हैं। अतः वह अकार्बनिक प्रक्रम (Inorganic Process) के उत्पादन हैं और एक ही प्रकार के पदार्थों के बने होते हैं। सब का एक निश्चित रासायनिक संगठन होता है जिसको स्पष्ट फारमूले के रूप में लिखा जा सकता है।

 

उन्हीं पत्थरों या खनिज पदार्थों की मूल्यवान (Precious) रत्नों में गणना की जा सकती है जो देखने में अत्यन्त सुन्दर हों, दुर्लभ हों और उनमें दड़क और टिकाऊपन हो और इसीलिए बहुमूल्य रत्नों में केवल हीरा, माणिक्य, नीलम, पन्ना और चुने हुए कीमती ओपल (Opal, या दूधिया पत्थर की गणना होती है। अपनी मनमोहक आभा और आकर्षक रूप के कारण मोती भी बहुमूल्य रत्नों की श्रेणी में आता है, यद्यपि वह जैविक उत्पादन है, खनिज पदार्थ नहीं है। अल्पमोली (Semi Precious) रत्नों में वे खनिज पदार्थ आते हैं

 

जिनको मूल्यवान रत्नों की श्रेणी में स्थान प्राप्त नहीं होता। परन्तु यह याद रखिये कि अल्पमोली होने का यह अर्थ नहीं है कि वे रत्न कुछ महत्त्व नहीं रखते या रत्न जगत में उनको प्रतिष्ठित स्थान प्राप्त नहीं है। इस श्रेणी में अनेक सुन्दर और आकर्षक और आभूषणों में अत्यन्त शौक से इस्तेमाल किए जाने वाले रत्न हैं। उनमें कुछ का नाम है जिरकन (Zircon), लालड़ी (Spinel), पुखराज (Topaz), हरितमणि (Jade), चन्द्रकान्त (Moon Stone), क्राइसोबेरील, तुरमली, (Tourmaline), कटैला या नीलमणि (Amethyst) पेरीडॉट तथा एक्वामेरीन । इन पत्थरों में पर्याप्त मात्रा में कठोरता, सुन्दरता, आभा और टिकाऊपन होता है। काट और पालिश हो जाने के पश्चात् इनमें से कुछ तो मूल्यवान रत्नों की श्रेणी में आने वाले रत्नों का मुकाबला करने लगते हैं। विशेषकर हमने स्वयं अपनी आँखों से देखा है कि ‘पेरीडॉट’ और ‘एक्वामेरीन’तो कभी-कभी अपनी आभा से पन्ना और नीलम को मात दे देते हैं और सच पूछिए तो बाजार में प्रायः वे मूल्यवान रत्नों के नाम से बिक जाते हैं। केवल अनुभवी और पारखी जौहरी ही उनकी वास्त- विकता को जान पाते हैं।

 

मूल्यवान (Precious) और अल्पमोली Semi Precious) रत्नों के अतिरिक्त रत्नों की दो श्रेणियां और हैं। एक संश्लिष्ट (Sunt etc) रत्न । यह रत्न कहीं से प्राप्त नहीं होते, बनाये जाते हैं। इनके बनाने में असली रत्नों के तत्वों का इस प्रकार मिश्रण किया जाता है कि तैयार हो जाने पर असली रत्न के समान ही उनका संघटन (Composition) और रूप रंग होता है। दूसरी श्रेणी में श्राते हैं कृत्रिम रत्न जिनको साधारण भाषा में ‘इमीटेशन’ कहा जाता है। संश्लिष्ट रत्न कृत्रिम रत्नों से अधिक टिकाऊ होते हैं। कृत्रिम ‘रत्न’ चाहे रूप रंग वैसा ही पा लें, परन्तु वे काँच या प्ला- स्टिक के बने होते हैं। अपारदर्शक कृत्रिम ‘रत्नों’ को बनाने में तो अधिकतर प्लास्टिक का ही इस्तेमाल होने लगा है।

ज्योतिषी से रत्न परामर्श

संसार के प्रत्येक भाग में रत्नों के प्रति आकर्षण प्राचीन काल से ही चला आया है। रत्न अपने चित्ताकर्षक रंग तथा ज्वलंत आभा के कारण बरबस मन को मोह लेते हैं और प्रकृति की यह देन संसार में लगभग किसी न किसी अंश में सब ही देशों में प्राप्त है। रत्न केवल आभूषणों की ही शोभा नहीं बढ़ाते, परन्तु ऐसा विश्वास है कि उनमें दैविक शक्ति भी निहित है और इसके कारण भी रत्नों के प्रति जनसाधारण का आकर्षण है। इसमें भी जरा संदेह नहीं है कि रोग-निवारण में रत्नों का उपयोग प्राचीन काल से प्रचलित है और उनमें रोग निवारण की शक्ति भी है।

ज्योतिषमें रत्नोंकी भी विशेष महिमा है। रत्नोंकी चमत्कारी शक्तिका सम्बन्ध आकाशीय ग्रहोंसे है। प्रत्येक ग्रहमें भिन्न-भिन्न प्रकारके प्राकृतिक गुण होते हैं। अनुभवसे यह पता चलता है कि ग्रहविशेष और रत्नविशेषकी प्रकृतिमें भारी गुणसाम्य है। इस प्रकार ये दोनों समानधर्मा हैं। यथा-सूर्य और माणिक्य, चन्द्र और मोती, मंगल और मूँगा, बुध और पन्ना, गुरु और पुखराज, शुक्र और हीरा, शनि और नीलम, राहु और गोमेद, केतु और लहसुनिया आदिमें गुणसाम्य है। स्वाभाविक बात यह है कि ग्रहोंकी रश्मियाँ अपनी तरहके गुणवाले रत्नोंकी ओर स्वतः आकर्षित होती हैं।

जातकके जन्मकालिक ग्रहोंकी स्थितिके आधारपर नि शुभाशुभका निर्धारण किया जाता है और इन्हीं शुभाशुभ क ग्रहोंके अनुसार धारणीय रत्नोंका निर्धारण होता है। जो क रत्न एक व्यक्तिके लिये अनुकूल हो, वह दूसरे व्यक्तिके लिये प्रतिकूल भी हो सकता है। अतः उपयुक्त रत्नका चुनाव किसी पारंगत ज्योतिषाचार्य (दैवज्ञ)की सलाहसे किया जाना उचित है। रत्न तीन प्रकारसे प्रभाव डालते हैं-१-शुभ कर्मोंके भोगमें आनेवाली बाधाओंको हटाना, २-अशुभ ग्रहोंके प्रभावसे रक्षा करना तथा ३-सात्त्विक, परंतु दुर्बल ग्रहोंमें अतिरिक्त बलकी वृद्धि करना।

 

जैसे एक छतरी आनेवाली बरसातको रोक नहीं सकती, परंतु व्यक्तिको बरसातके पानीसे बचा सकती है। इसी प्रकार रत्नके धारण करनेसे ग्रहोंके दुष्प्रभावसे यथासाध्य रक्षा होती है।

रत्नों की संख्या काफी बड़ी है, परन्तु भारत में जौहरियों ने विशेष मान्यता केवल ८४ रत्नों को दी है। इन ८४ रत्नों में से ह माणिक्य, मोती, प्रवाल (मूंगा) पन्ना, पुष्पराग (पुखराज), हीरा, नीलम, गोमेद और वैदूर्यमणि (लहसुनिया) नवरत्न की श्रेणी में प्रतिष्ठित हैं। इन नवरत्नों में से भी ५ रत्न यथा माणिक्य, मोती, हीरा, नीलम और पन्ना को एक विशिष्ट स्थान प्राप्त है और वे महारत्न माने जाते हैं, शेष केवल रत्न । इन नवरत्नों के अतिरक्त जो रत्न हैं उन्हें उपरत्न माना जाता है। परन्तु शोभा और मूल्य में कुछ उपरत्न कहलाने वाले रत्न कितने ही नवरत्नों की गणना में आये रत्नों की आभा से कम नहीं होते। कठोरता, टिकाऊपन, दुर्ल- भता, चमक, दड़क, पारदर्शिता या पारमसिकता में वे रत्न किसी प्रकार पीछे नहीं हैं। हम नीचे, मान्यता के अनुसार, ८४ रत्नों की सूची तथा उनका अत्यन्त संक्षिप्त परिचय देते हैं।

में प्रचुर मात्रा में जानकारी दें।

 

रत्नों के सम्बन्ध में सबसे महत्त्वपूर्ण बात जानने की यह है कि गिने हुए कुछ रत्नों के अतिरिक्त सब खनिज पदार्थ हैं और भूगर्भ से प्राप्त होते हैं। अतः वह अकार्बनिक प्रक्रम (Inorganic Process) के उत्पादन हैं और एक ही प्रकार के पदार्थों के बने होते हैं। सब का एक निश्चित रासायनिक संगठन होता है जिसको स्पष्ट फारमूले के रूप में लिखा जा सकता है।

 

उन्हीं पत्थरों या खनिज पदार्थों की मूल्यवान (Precious) रत्नों में गणना की जा सकती है जो देखने में अत्यन्त सुन्दर हों, दुर्लभ हों और उनमें दड़क और टिकाऊपन हो और इसीलिए बहुमूल्य रत्नों में केवल हीरा, माणिक्य, नीलम, पन्ना और चुने हुए कीमती ओपल (Opal, या दूधिया पत्थर की गणना होती है। अपनी मनमोहक आभा और आकर्षक रूप के कारण मोती भी बहुमूल्य रत्नों की श्रेणी में आता है, यद्यपि वह जैविक उत्पादन है, खनिज पदार्थ नहीं है। अल्पमोली (Semi Precious) रत्नों में वे खनिज पदार्थ आते हैं

 

जिनको मूल्यवान रत्नों की श्रेणी में स्थान प्राप्त नहीं होता। परन्तु यह याद रखिये कि अल्पमोली होने का यह अर्थ नहीं है कि वे रत्न कुछ महत्त्व नहीं रखते या रत्न जगत में उनको प्रतिष्ठित स्थान प्राप्त नहीं है। इस श्रेणी में अनेक सुन्दर और आकर्षक और आभूषणों में अत्यन्त शौक से इस्तेमाल किए जाने वाले रत्न हैं। उनमें कुछ का नाम है जिरकन (Zircon), लालड़ी (Spinel), पुखराज (Topaz), हरितमणि (Jade), चन्द्रकान्त (Moon Stone), क्राइसोबेरील, तुरमली, (Tourmaline), कटैला या नीलमणि (Amethyst) पेरीडॉट तथा एक्वामेरीन । इन पत्थरों में पर्याप्त मात्रा में कठोरता, सुन्दरता, आभा और टिकाऊपन होता है। काट और पालिश हो जाने के पश्चात् इनमें से कुछ तो मूल्यवान रत्नों की श्रेणी में आने वाले रत्नों का मुकाबला करने लगते हैं। विशेषकर हमने स्वयं अपनी आँखों से देखा है कि ‘पेरीडॉट’ और ‘एक्वामेरीन’तो कभी-कभी अपनी आभा से पन्ना और नीलम को मात दे देते हैं और सच पूछिए तो बाजार में प्रायः वे मूल्यवान रत्नों के नाम से बिक जाते हैं। केवल अनुभवी और पारखी जौहरी ही उनकी वास्त- विकता को जान पाते हैं।

 

मूल्यवान (Precious) और अल्पमोली Semi Precious) रत्नों के अतिरिक्त रत्नों की दो श्रेणियां और हैं। एक संश्लिष्ट (Sunt etc) रत्न । यह रत्न कहीं से प्राप्त नहीं होते, बनाये जाते हैं। इनके बनाने में असली रत्नों के तत्वों का इस प्रकार मिश्रण किया जाता है कि तैयार हो जाने पर असली रत्न के समान ही उनका संघटन (Composition) और रूप रंग होता है। दूसरी श्रेणी में श्राते हैं कृत्रिम रत्न जिनको साधारण भाषा में ‘इमीटेशन’ कहा जाता है। संश्लिष्ट रत्न कृत्रिम रत्नों से अधिक टिकाऊ होते हैं। कृत्रिम ‘रत्न’ चाहे रूप रंग वैसा ही पा लें, परन्तु वे काँच या प्ला- स्टिक के बने होते हैं। अपारदर्शक कृत्रिम ‘रत्नों’ को बनाने में तो अधिकतर प्लास्टिक का ही इस्तेमाल होने लगा है।

 

कृपया ध्यान दें: यदि आप परामर्श के 7 दिनों के भीतर पंडितजी द्वारा सुझाए गए रत्न का ऑर्डर करते हैं, तो 100% कैशबैक केवल 4 दिनों के भीतर आपके वॉलेट में जमा हो जाएगा। ऑर्डर मिलने के बाद, हम आपके ज्योतिषी की उपलब्धता के अनुसार चैट/कॉल पर आपको पंडितजी से जोड़ देंगे।

 

किसी भी रत्न को पहनने से पहले आपको विशेषज्ञ की सलाह क्यों लेनी चाहिए?

 

रत्न पहनने से ज़्यादा महत्वपूर्ण है, सबसे अच्छा रत्न चुनना जो व्यक्ति के शारीरिक नियंत्रण और शरीर विज्ञान को बेहतर बनाता है और बेहतर मानसिक स्थिति, इच्छा शक्ति और आत्मविश्वास में वृद्धि को बढ़ावा देता है। रत्नों का उपयोग दुनिया भर में किया जाता है, लेकिन गलत तरीके से। यदि चयन उचित नहीं है, तो भयानक प्रभाव होंगे। जैसा कि ऊपर स्पष्ट किया गया है, एक प्रमाणित ज्योतिषी यह पता लगा सकता है कि कौन सा रत्न किसी व्यक्ति के लिए उपयुक्त/उत्पादक होगा। लोगों को परीक्षण के आधार पर रत्न नहीं पहनना चाहिए, क्योंकि अगर सही तरीके से नहीं चुना गया तो वे अच्छे से ज़्यादा नुकसान पहुँचा सकते हैं।

 

क्या रत्न वास्तव में काम करते हैं?

 

 रत्न काम तो करते हैं, लेकिन वे जादू नहीं हैं। उन्हें अपना समय लगता है। लेकिन जब इतनी तेज़ कंपन वाली कोई चीज़ दिन-रात आपके शरीर को छूती है, तो यह निश्चित रूप से शरीर और ख़ास तौर पर तंत्रिका तंत्र और व्यक्ति की आध्यात्मिक आभा को प्रभावित करती है। चिकित्सा विज्ञान की तरह ही रत्न चिकित्सा की सफलता भी इस बात पर निर्भर करती है कि इसे कितने सही तरीके से और सही तरीक़े से लागू किया गया है। अगर आप रत्नों की दुनिया में नए हैं और ज्योतिष-रत्न विज्ञान के अद्भुत विज्ञान से लाभ उठाना चाहते हैं, तो निम्नलिखित बिंदु आपके लिए काफ़ी मददगार हो सकते हैं।

 

रत्न कैसे काम करते हैं?

 

रत्नों को उनके संबंधित ग्रहों से अतिरिक्त ऊर्जा प्राप्त करने के लिए पहना जाता है ताकि जन्म के समय ग्रहों की किरणों में अगर कोई कमी हो तो वह अपने आप ठीक हो जाए और कमज़ोर ग्रह मज़बूत हो जाए। इसलिए अगर कोई ग्रह शुभ है लेकिन कमज़ोर है तो उसे ज़रूरी ताकत देने के लिए उसका रत्न पहनना चाहिए। उदाहरण के लिए अगर किसी की कुंडली में सूर्य कमज़ोर है, तो उस व्यक्ति को माणिक्य पहनना चाहिए क्योंकि सूर्य का रत्न माणिक्य है।  माणिक सूर्य की ऊर्जा को अवशोषित कर उसे धारणकर्ता के शरीर में पहुंचाएगा और उसे मजबूत करेगा, अर्थात वह मजबूत हो जाएगा और उस विशेष जातक को सूर्य द्वारा दिए गए परिणामों 

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