मोती
आठ प्रकार के मोती मोती बनने की कहानी : दूसरे ४ रत्नों से अधिक मुवुः प्राप्ति स्थान और रंग : मोती के दोष : कल्चर नेचुरल और इमीटेशन मोती : मोती की जांच : मुक्ता शोधन ।
विविध नाम – मोती को संस्कृत में मुक्ता, मौक्तिकः शुक्तिज, इन्दु रत्न; उर्दू-फारसी में मुरवावीद और अंग्रेजी में Pearl कहतेहैं।
भौतिक गुण – मोती खनिज नहीं, जैविक रचना है। इसकी कठोरता 3.5 से 4 तक , आपेक्षिक गुरुत्व 2.65 या 2.69 से लेकर 2.84 व 2.89 तक ।
मोती की गणना अनन्त काल से बहुमूल्य रत्नों में होती आई है। भारत में प्राचीन मान्यता के अनुसार मोती अपनी उत्पत्ति के अनुसार आठ प्रकार के होते हैं- अभ्र मुक्ता यह बादलों से उत्पन्न होता है। इसका रंग पीत आभायुक्त होता है। (२) सर्प मुक्ता– वह सर्प के फण में होता है। नील आभायुक्त और बहुत चमक वाला होता है। (३) बाँस मुक्ता यह बाँस से निकलता है। कुछ हरित आभायुक्त होता है तथा बेर के आकार का कुछ लम्बा सा होता है। (४) शूकर मुक्ता – वह सूअर के मस्तक से निकलता है। कुछ पीलापन लिये हुये सरसों के तेल के समान होता है। (५) गज मुक्ता– वह ऐरावत वंशीय हाथी की कनपटी से उत्पन्न होता है। आकार में आँवले के समान होता है। इसमें चमक नहीं होती। (६) शख मुक्ता यह हल्का गेरुओं या सफेद रंग का होता है। इसमें चमक बहुत कम होती है। परन्तु चिकना बहुत होता है। (७) मीन मुक्ता – यह मछली के गर्भसे उत्पन्न होता है। कुछ हरापन लिये हुए मोतिया के फूल के समान या पांडु के समान रंग वाला होता है। कहा जाता है कि इस मोती को मुख में रखकर पानी में प्रवेश करने से भीतर की समस्त वस्तुएँ दिखाई दे जाती हैं। (८) शुक्ति मुक्ता – यह सीप के अन्दर से निकलता है। आजकल केवल सीप के गर्भ से प्राप्त मोतियों का प्रचलन है और ऊपर अन्य भेदों के र्वाणत मोतो अप्राप्य हैं। वैज्ञानिक तो यह स्वीकार करने को भी तैयार नहीं हैं कि मोती सीप के अतिरिक्त किसी और प्रकार से प्राप्त हो सकते हैं।
जैसा हम ऊपर कह चुके हैं कि आजकल की मान्यता तो यह है कि मोती केवल सीप से ही प्राप्त होता है। यद्यपि वह जैविक उत्पत्ति का है, परन्तु उसकी बनावट विशेषतः खनिज पदार्थ के समान है। इसलिये हम मोती को रत्नीय पत्थर तो कह नहीं सकते, परन्तु वह मूल्यवान रत्न अवश्य है।
मोती किसको धारण करना चाहिए? मोती चन्द्र का रत्न है। जिस कुण्डली में चन्द्र शुभ भाव का स्वामी हो उसके जातक को मोती धारण करने से लाभ होगा ।
मेष लग्न की कुण्डली में चन्द्र चतुर्थ भाव का स्वामी है। चतुर्वेश चन्द्र लग्नेश मंगल का मित्र है। अतः मोती धारण करने से मेष लग्न के जातक मानसिक शान्ति, मातृ सुख, विद्या-लाभ, गृह-भूमि लाभादि प्राप्त कर सकते हैं। मोती चन्द्र की महादशा में विशेष रूप से शुभ फलप्रद होगा। मोतो लग्नेश मंगल के रत्न मूंगे के साथ पहनने पर अधिक लाभकर होगा।
वृष लग्न की कुण्डली में चन्द्र तृतीय भाव का स्वामी है। इस लग्न के जातक को मोती कभी नहीं धारण करना चाहिये।
मिथुन लग्न में चन्द्र धन भाव का स्वामी है। चन्द्र की महादशा में इस लग्न का जातक मोती पहन सकता है, परन्तु यदि इसके बिना काम चला सके तो अच्छा होगा क्योंकि चन्द्र मारकेश भी है। परन्तु कुण्डली में यदि चन्द्र द्वितीय का स्वामी होकर एकादश, दशम या नवम भाव में स्थित हो या द्वितीय ही में स्वराशि में हो तो चन्द्र की महा दशा में मोती धारण करने से धन लाभ होगा।
कर्क लग्न में चन्द्र लग्नेश है। अतः इस लग्न के जातकों को आजीवन मोती धारण करना शुभ फलप्रद होगा। मोती उनके स्वास्थ्य की रक्षा करेगा तथा आयु में वृद्धि होगी । आर्थिक संकट में भी रक्षा कवच बना रहेगा। मोती पवित्रता, ठीक शुद्धता और विनम्रता का सूचक है।कम-से-अपने भजन के दसवां हिस्सा पर रत्ती जैसे कि अगर 60 किलो वजन है तो 6 रत्ती का हो और यथासम्भव शुद्ध हो अथवा ११ रत्ती का मोती चाँदी की अँगूठी में सोमवार या बृहस्पतिवार को खरीदकर या जड़वाकर किसी शुक्ल पक्ष के सोमवार को, जो उपासनादि की विधि दिये गये विधि के अनुसार ११००० बार निम्नलिखित मन्त्र का जाप करने के पश्चात् संध्या के समय धारण करें। यदि चन्द्र के दर्शन करके घारण करें तो और भी अच्छा होगा ।
धारण विधि रत्न अँगूठी में इस प्रकार जड़ा जाये कि वह त्वचा को स्पर्श करे। ऐसो अँगूठी को Touching ring कहते हैं। अँगूठो शुक्ल पक्ष के किसी रविवार के दिन सूर्योदय के समय धारण करनी चाहिये । धारण करने से पूर्व अँगूठी को कच्चे दूध या गंगाजल में डुबोकर रखना चाहिये । फिर उसको शुद्ध जल से स्नान कराकर पुष्प, चन्दनऔर धूपबत्ती से उसकी उपासना करनी चाहिए
मंत्र ॐ सों सोमाय नमः ।
यों तो मोती कोई बहुत मंहगा रत्न नहीं है. फिर भी जो लोग उसे न खरीद सकें वे उसकी बदल में चन्द्रकान्त मणि (Moon Stone) धारण कर सकते हैं। यों तो बदले में सफेद पुखराज भी पहना जा सकता है, परन्तु वह मोती से सस्ता नहीं होता ।
परन्तु सावधान ! मोती या उसकी बदल के रत्न के साथ होरा, पन्ना, नीलम, गोमेद और वैदूर्य कभी नहीं पहनना चाहिए ।
सिंह लग्न में चन्द्र द्वादश का स्वामी है। अतः इस लग्न के जातक को मोती नहीं धारण करना चाहिए। हाँ, यदि चन्द्र द्वादश में स्वराशि में स्थित हो तो चन्द्र की महादशा में मोती धारण किया जा सकता है।
कन्या लग्न में चन्द्र एकादश (लाभ) भाव का स्वामी होता है। चन्द्र की महादशा में मोती धारण करने से आर्थिक लाभ, यश तथा सन्तान सुख प्राप्त हो सकता है।
तुला लग्न में चन्द्र दशम भाव का स्वामी है। यद्यपि चन्द्र और लग्नेश मित्र नहीं हैं, परन्तु तुला लग्न वालों को मोती धारण करने से राज्य कृपा, यश, मान, प्रतिष्ठा प्राप्त होती है। नौकरी याव्यवसाय में उन्नति होती है। चन्द्र की महादशा में मोती का घारण करना विशेष रूप से लाभदायक है।
वृश्चिक लग्न में चन्द्र नवम (भाग्य) भाव का स्वामी है। अतः मोती धारण करने से धर्म, कर्म और भाग्य में उन्नति होती है। पितृ सुख प्राप्त होता है। यश, मान बढ़ता है। चन्द्र की महादशा में मोती का धारण करना विशेष रूप से लाभप्रद होगा। कम-से-अपने भजन के दसवां हिस्सा पर रत्ती जैसे कि अगर 60 किलो वजन है तो 6 रत्ती का हो और यथासम्भव शुद्ध हो अथवा ११ रत्ती का मोती चाँदी की अँगूठी में सोमवार या बृहस्पतिवार को खरीदकर या जड़वाकर किसी शुक्ल पक्ष के सोमवार को, जो उपासनादि की विधि दिये गये विधि के अनुसार ११००० बार निम्नलिखित मन्त्र का जाप करने के पश्चात् संध्या के समय धारण करें। यदि चन्द्र के दर्शन करके घारण करें तो और भी अच्छा होगा ।
धारण विधि रत्न अँगूठी में इस प्रकार जड़ा जाये कि वह त्वचा को स्पर्श करे। ऐसो अँगूठी को Touching ring कहते हैं। अँगूठो शुक्ल पक्ष के किसी रविवार के दिन सूर्योदय के समय धारण करनी चाहिये । धारण करने से पूर्व अँगूठी को कच्चे दूध या गंगाजल में डुबोकर रखना चाहिये । फिर उसको शुद्ध जल से स्नान कराकर पुष्प, चन्दनऔर धूपबत्ती से उसकी उपासना करनी चाहिए
मंत्र ॐ सों सोमाय नमः ।
यों तो मोती कोई बहुत मंहगा रत्न नहीं है. फिर भी जो लोग उसे न खरीद सकें वे उसकी बदल में चन्द्रकान्त मणि (Moon Stone) धारण कर सकते हैं। यों तो बदले में सफेद पुखराज भी पहना जा सकता है, परन्तु वह मोती से सस्ता नहीं होता ।
परन्तु सावधान ! मोती या उसकी बदल के रत्न के साथ होरा, पन्ना, नीलम, गोमेद और वैदूर्य कभी नहीं पहनना चाहिए ।
धनु लग्न में चन्द्र अष्टम का स्वामी होता है। अतः इस लग्न के जातक को मोती धारण करना अनुचित है।
मकर लग्न में चन्द्र सप्तम का स्वामी होने के कारण मारकेश होता है। वह लग्नेश शनि का शत्रु भी है। अतः इस लग्न के जातक के लिए मोती हानि, कारक प्रमाणित होगा
कुम्भ लग्न में चन्द्र षष्ठ भाव का होता है। चन्द्र लग्नेश शनि का शत्रु भी है। अतः इस लग्न के जातक को मोती धारण करना निषेध है।
मीन लग्न में चन्द्र पंचम त्रिकोण (सुत भाव) का स्वामी होता है। मोती धारण करने से जातक को सन्तान सुख, विद्या लाभ तथा यश, मान प्राप्त होता है। पंचम से नवम होने के कारण भाग्य भाव भी माना जाता है। अतः मोती के धारण करने से भाग्योन्नति भी होती है। चन्द्र की महादशा में मोती धारण करना विशेष रूप से लाभप्रद होता है।
कम-से-अपने भजन के दसवां हिस्सा पर रत्ती जैसे कि अगर 60 किलो वजन है तो 6 रत्ती का हो और यथासम्भव शुद्ध हो अथवा ११ रत्ती का मोती चाँदी की अँगूठी में सोमवार या बृहस्पतिवार को खरीदकर या जड़वाकर किसी शुक्ल पक्ष के सोमवार को, जो उपासनादि की विधि दिये गये विधि के अनुसार ११००० बार निम्नलिखित मन्त्र का जाप करने के पश्चात् संध्या के समय धारण करें। यदि चन्द्र के दर्शन करके घारण करें तो और भी अच्छा होगा ।
धारण विधि रत्न अँगूठी में इस प्रकार जड़ा जाये कि वह त्वचा को स्पर्श करे। ऐसो अँगूठी को Touching ring कहते हैं। अँगूठो शुक्ल पक्ष के किसी रविवार के दिन सूर्योदय के समय धारण करनी चाहिये । धारण करने से पूर्व अँगूठी को कच्चे दूध या गंगाजल में डुबोकर रखना चाहिये । फिर उसको शुद्ध जल से स्नान कराकर पुष्प, चन्दनऔर धूपबत्ती से उसकी उपासना करनी चाहिए
मंत्र ॐ सों सोमाय नमः ।
यों तो मोती कोई बहुत मंहगा रत्न नहीं है. फिर भी जो लोग उसे न खरीद सकें वे उसकी बदल में चन्द्रकान्त मणि (Moon Stone) धारण कर सकते हैं। यों तो बदले में सफेद पुखराज भी पहना जा सकता है, परन्तु वह मोती से सस्ता नहीं होता ।
परन्तु सावधान ! मोती या उसकी बदल के रत्न के साथ होरा, पन्ना, नीलम, गोमेद और वैदूर्य कभी नहीं पहनना चाहिए ।
कम-से-अपने भजन के दसवां हिस्सा पर रत्ती जैसे कि अगर 60 किलो वजन है तो 6 रत्ती का हो और यथासम्भव शुद्ध हो अथवा ११ रत्ती का मोती चाँदी की अँगूठी में सोमवार या बृहस्पतिवार को खरीदकर या जड़वाकर किसी शुक्ल पक्ष के सोमवार को, जो उपासनादि की विधि दिये गये विधि के अनुसार ११००० बार निम्नलिखित मन्त्र का जाप करने के पश्चात् संध्या के समय धारण करें। यदि चन्द्र के दर्शन करके घारण करें तो और भी अच्छा होगा ।
धारण विधि रत्न अँगूठी में इस प्रकार जड़ा जाये कि वह त्वचा को स्पर्श करे। ऐसो अँगूठी को Touching ring कहते हैं। अँगूठो शुक्ल पक्ष के किसी रविवार के दिन सूर्योदय के समय धारण करनी चाहिये । धारण करने से पूर्व अँगूठी को कच्चे दूध या गंगाजल में डुबोकर रखना चाहिये । फिर उसको शुद्ध जल से स्नान कराकर पुष्प, चन्दनऔर धूपबत्ती से उसकी उपासना करनी चाहिए
मंत्र ॐ सों सोमाय नमः ।
यों तो मोती कोई बहुत मंहगा रत्न नहीं है. फिर भी जो लोग उसे न खरीद सकें वे उसकी बदल में चन्द्रकान्त मणि (Moon Stone) धारण कर सकते हैं। यों तो बदले में सफेद पुखराज भी पहना जा सकता है, परन्तु वह मोती से सस्ता नहीं होता ।
परन्तु सावधान ! मोती या उसकी बदल के रत्न के साथ होरा, पन्ना, नीलम, गोमेद और वैदूर्य कभी नहीं पहनना चाहिए