पुखराज
पुखराज किसे धारण करना चाहिए ? – पुखराज बृहस्पति का रत्न है, परन्तु इस सम्बन्ध में कुछ मतभेद हैं कि बृहस्पति का रत्न सफेद पुखराज है या पीला पुखराज । अपना मत निश्चित करने के लिये हमने बृहत्जातक की शरण ली जिसके अध्याय २ में पंचम श्लोक इस प्रकार है :-वर्णास्ताम्रसिताति रक्त हरितव्यापीत चित्रा सिता । वह्वयम्बवग्निज केशवेन्द्र शचिकाः सूर्यादिनाथाः क्रमात् । अर्थात् लाल, श्वेत, रक्त वर्ण हा पीलापन लिये हुए तरह-तरह के रंग और काला यह सूर्य से क्रमानुसार शनि तक के रंग हैं। आचार्य वराहमिहिर के इस श्लोक से स्पष्ट है कि बृहस्पति का रंग पीला है, अतः इसका रत्न पीला पुखराज है, श्वेत नहीं । जिस कुण्डली में बृहस्पति शुभ भावों का स्वामी हो उसके जातक को समयानुसार या आवश्यकतानुसार पीला पुखराज धारण करना शुभ फलदायक होगा । और जिसमें बृहस्पति अशुभ भावों का स्वामी हो उसको पीले पुखराज को धारण करने से हानि होगी ।
मेष लग्न के लिये बृहस्पति नवम त्रिकोण और द्वादश भावों का स्वामी है। नवम त्रिकोण का स्वामी होने के कारण बृहस्पति इस लग्न के लिये शुभ ग्रह माना गया है। अतः पुखराज धारण करने से जातक को बुद्धि बल, ज्ञान, विद्या में उन्नति, धन, मान, प्रतिष्ठा तथा भाग्य में उन्नति प्राप्त होती है। बृहस्पति की महादशा में यह रत्न धारण करना विशेष रूप से फल-दायक है। यदि पुखराज लग्नेश मंगल के रत्न मूंगे के साथ पहना जाये तो बहुत ही लाप्रद बन जाता है।
पुखराज सोने की अँगूठी में जड़वाना चाहिये । श्रेयस्कर यही होगा कि यह कार्य बृहस्पतिवार जाये । अपनि वजन के अनुसार 10 वां हिसा पर रत्ती जैसे कि 60 KG वजन हो तो 6 स्ती धारण करना चाहिए विधि अनुसार उपासनादि करके तथा १६००० को सम्पन्न किया नहीं होता । अच्छा कुछ का मत है कि हमारी बताई हुई निम्नलिखित मन्त्र का जप करके किसी शुक्ल पक्ष के बृहस्पतिवार को सूर्यास्त से एक घंटे पूर्व श्रद्धापूर्वक पुखराज की अँगूठी को तर्जनी अँगुली में धारण करना चाहिये ।
धारण विधि रत्न अँगूठी में इस प्रकार जड़ा जाये कि वह त्वचा को स्पर्श करे। ऐसो अँगूठी को Touching ring कहते हैं। अँगूठो शुक्ल पक्ष के किसी रविवार के दिन सूर्योदय के समय धारण करनी चाहिये । धारण करने से पूर्व अँगूठी को कच्चे दूध या गंगाजल में डुबोकर रखना चाहिये । फिर उसको शुद्ध जल से स्नान कराकर पुष्प, चन्दनऔर धूपबत्ती से उसकी उपासना करनी चाहिए
परन्तु सावधान ! मूंगे के साथ पन्ना, हीरा. नीलम, गोमेद और वैदूर्य कभी नहीं धारण करना चाहिए
मंत्र – ॐ बृं बृहस्पतिघे नमः ।
परन्तु पीले पुखराज के साथ हीरा, नीलम, गोमेद और वैदूर्य कभी नहीं धारण करना चाहिए ।
वृषभ लग्न के लिए बृहस्पति अष्टम और एकादश भाव का स्वामी होता है। ज्योतिष के मान्य सिद्धान्तों के अनुसार बृहस्पति वृषभ लग्न के लिये शुभ ग्रह नहीं माना गया है। इसके अतिरिक्त लग्नेश शुक्र और बृहस्पति में परस्पर मित्रता नहीं है। तब भी यह यदि एकादश का स्वामी होकर बृहस्पति द्वितीय, चतुर्थ, पंचम, नवम या लग्न में स्थित हो तो बृहस्पति की महादशा में पीले पुखराज के धारण से धन लाभ में वृद्धि होगी।
मिथुन लग्न के लिये बृहस्पति सप्तम और दशम भावों का स्वामी होने के कारण केन्द्राधिपति दोष से दूषित है। तब भी यदि बृहस्पति लग्न द्वितीय, एकादश या किसी केन्द्र त्रिकोण में स्थित हो तो बृहस्पति की महादशा में पीला पुख- राज धारण करने से सन्तान सुख, समृद्धि में वृद्धि तथा धन की प्राप्ति होती है। परन्तु यह न विस्मरण करना चाहिये कि मिथुन लग्न के लिये बृहस्पति एक प्रबल मारकेश है। आर्थिक लाभ या सांसारिक सुख देकर वह मारक भी बन सकता है।
कर्क लग्न के लिए बृहस्पति षष्ठ और नपम का स्वामी होता है। नवम त्रिकोण का स्वामी होनेके कारण वह इस लग्न के लिये एक शुभ ग्रह माना गया है। अतः इस लग्न के जातक को पुखराज धारण करने से सन्तान सुख ज्ञान में वृद्धि भाग्योन्नति, पित् सुखः ईश्वर भक्ति की भावना तथा धन की प्राप्ति होती है। उसको मान और प्रतिष्ठा भी मिलती है। बृहस्पति को माहदशा में इसके धारण करने से विशेष रूप से लाभ होता है। यदि पोला पुखराज इस लग्न का जातक मोती या मुंगे के साथ धारण करें तो वह बहुत लाभप्रद सिद्ध होगा।
पुखराज सोने की अँगूठी में जड़वाना चाहिये । श्रेयस्कर यही होगा कि यह कार्य बृहस्पतिवार जाये । अपनि वजन के अनुसार 10 वां हिसा पर रत्ती जैसे कि 60 KG वजन हो तो 6 स्ती धारण करना चाहिए विधि अनुसार उपासनादि करके तथा १६००० को सम्पन्न किया नहीं होता । अच्छा कुछ का मत है कि हमारी बताई हुई निम्नलिखित मन्त्र का जप करके किसी शुक्ल पक्ष के बृहस्पतिवार को सूर्यास्त से एक घंटे पूर्व श्रद्धापूर्वक पुखराज की अँगूठी को तर्जनी अँगुली में धारण करना चाहिये ।
धारण विधि रत्न अँगूठी में इस प्रकार जड़ा जाये कि वह त्वचा को स्पर्श करे। ऐसो अँगूठी को Touching ring कहते हैं। अँगूठो शुक्ल पक्ष के किसी रविवार के दिन सूर्योदय के समय धारण करनी चाहिये । धारण करने से पूर्व अँगूठी को कच्चे दूध या गंगाजल में डुबोकर रखना चाहिये । फिर उसको शुद्ध जल से स्नान कराकर पुष्प, चन्दनऔर धूपबत्ती से उसकी उपासना करनी चाहिए
परन्तु सावधान ! मूंगे के साथ पन्ना, हीरा. नीलम, गोमेद और वैदूर्य कभी नहीं धारण करना चाहिए
मंत्र – ॐ बृं बृहस्पतिघे नमः ।
परन्तु पीले पुखराज के साथ हीरा, नीलम, गोमेद और वैदूर्य कभी नहीं धारण करना चाहिए ।
सिंह लग्न के लिये बृहस्पति पंचम त्रिकोण और अष्टम भाव का स्वामी होता है। पंचम त्रिकोण का स्वामी होने के कारण वह इस लग्न के लिये शुभ ग्रह माना गया । अतः सिंह लग्न के जातकों के लिये पीला पुखराज धारण करना अत्यन्त शुभ फलदायक होगा। बृहस्पति की महादशा में इस रत्न का धारण करना विशेष रूप से लाभप्रद होगा। यदि यह माणिक्य के साथ पहना जाये तो और भी उत्तम होगा।
पुखराज सोने की अँगूठी में जड़वाना चाहिये । श्रेयस्कर यही होगा कि यह कार्य बृहस्पतिवार जाये । अपनि वजन के अनुसार 10 वां हिसा पर रत्ती जैसे कि 60 KG वजन हो तो 6 स्ती धारण करना चाहिए विधि अनुसार उपासनादि करके तथा १६००० को सम्पन्न किया नहीं होता । अच्छा कुछ का मत है कि हमारी बताई हुई निम्नलिखित मन्त्र का जप करके किसी शुक्ल पक्ष के बृहस्पतिवार को सूर्यास्त से एक घंटे पूर्व श्रद्धापूर्वक पुखराज की अँगूठी को तर्जनी अँगुली में धारण करना चाहिये ।
धारण विधि रत्न अँगूठी में इस प्रकार जड़ा जाये कि वह त्वचा को स्पर्श करे। ऐसो अँगूठी को Touching ring कहते हैं। अँगूठो शुक्ल पक्ष के किसी रविवार के दिन सूर्योदय के समय धारण करनी चाहिये । धारण करने से पूर्व अँगूठी को कच्चे दूध या गंगाजल में डुबोकर रखना चाहिये । फिर उसको शुद्ध जल से स्नान कराकर पुष्प, चन्दनऔर धूपबत्ती से उसकी उपासना करनी चाहिए
परन्तु सावधान ! मूंगे के साथ पन्ना, हीरा. नीलम, गोमेद और वैदूर्य कभी नहीं धारण करना चाहिए
मंत्र – ॐ बृं बृहस्पतिघे नमः ।
परन्तु पीले पुखराज के साथ हीरा, नीलम, गोमेद और वैदूर्य कभी नहीं धारण करना चाहिए ।
कन्या लग्न के लिये बृहस्पति चतुर्थ और सप्तम का स्वामी होता है। अतः वह केन्द्रा- धिपति दोष से दूषित होता हुआ प्रबल मारकेश होता है। तब भी यदि बृहस्पति का लग्न द्वितीय, चतुर्थ, पंचम, सप्तम. नवम, दशम या एकादश में स्थित हो तो बृहस्पति की महादशा में इससे सन्तान सुख ज्ञान विद्याः धन मान प्रतिष्ठा प्राप्त होगी। परन्तु सांसारिक सुख देते हुए वह मारक प्रभाव दे सकता है।
तुला लग्न के लिये बृहस्पति तृतीय और षष्ठ का स्वामी होने के कारण अत्यन्त अशुभ ग्रह माना गया है। इसके अतिरिक्त लग्नेश शुक्र बृहस्पति का शत्रु है। अतः इस लग्न के जातक को पीला पुखराज कभी नहीं धारण करना चाहिये ।
वृश्चिक लग्न के लिये बृहस्पति द्वितीय और पंचम त्रिकोण का स्वामी होने के कारण शुभ ग्रह माना गया है। इसके अतिरिक्त लग्नेश मंगल और बृहस्पति परस्पर मित्र हैं। अतः वृश्चिक ‘लग्न के जातकों को पीला पुखराज अत्यन्त शुभ फलदायक है विशेषकर बृहस्पति को महादशा में। पुखराज यदि मूंगे के साथ धारण किया जाये तो और भी अधिक लाभदायक होगा।
पुखराज सोने की अँगूठी में जड़वाना चाहिये । श्रेयस्कर यही होगा कि यह कार्य बृहस्पतिवार जाये । अपनि वजन के अनुसार 10 वां हिसा पर रत्ती जैसे कि 60 KG वजन हो तो 6 स्ती धारण करना चाहिए विधि अनुसार उपासनादि करके तथा १६००० को सम्पन्न किया नहीं होता । अच्छा कुछ का मत है कि हमारी बताई हुई निम्नलिखित मन्त्र का जप करके किसी शुक्ल पक्ष के बृहस्पतिवार को सूर्यास्त से एक घंटे पूर्व श्रद्धापूर्वक पुखराज की अँगूठी को तर्जनी अँगुली में धारण करना चाहिये ।
धारण विधि रत्न अँगूठी में इस प्रकार जड़ा जाये कि वह त्वचा को स्पर्श करे। ऐसो अँगूठी को Touching ring कहते हैं। अँगूठो शुक्ल पक्ष के किसी रविवार के दिन सूर्योदय के समय धारण करनी चाहिये । धारण करने से पूर्व अँगूठी को कच्चे दूध या गंगाजल में डुबोकर रखना चाहिये । फिर उसको शुद्ध जल से स्नान कराकर पुष्प, चन्दनऔर धूपबत्ती से उसकी उपासना करनी चाहिए
परन्तु सावधान ! मूंगे के साथ पन्ना, हीरा. नीलम, गोमेद और वैदूर्य कभी नहीं धारण करना चाहिए
मंत्र – ॐ बृं बृहस्पतिघे नमः ।
परन्तु पीले पुखराज के साथ हीरा, नीलम, गोमेद और वैदूर्य कभी नहीं धारण करना चाहिए ।
धनु लग्न के लिये बृह- स्पति लग्न ओर चतुर्थ का स्वामी होने के कारण अत्यन्त शुभ ग्रह है। इस लग्न के जातक पोला पुखराज सदा रक्षा कवच के समान धारण कर सकते हैं। बृहस्पति की महादशा में इस रत्न का धारण करना विशेष रूप से शुभ फलदायक होगा ।। पुखराज यदि नवम(भाग्य) के स्वामी सूर्य के रत्न माणिक्य के साथ धारण किया जाये तो उसके शुभ फल में वृद्धि होगी।
पुखराज सोने की अँगूठी में जड़वाना चाहिये । श्रेयस्कर यही होगा कि यह कार्य बृहस्पतिवार जाये । अपनि वजन के अनुसार 10 वां हिसा पर रत्ती जैसे कि 60 KG वजन हो तो 6 स्ती धारण करना चाहिए विधि अनुसार उपासनादि करके तथा १६००० को सम्पन्न किया नहीं होता । अच्छा कुछ का मत है कि हमारी बताई हुई निम्नलिखित मन्त्र का जप करके किसी शुक्ल पक्ष के बृहस्पतिवार को सूर्यास्त से एक घंटे पूर्व श्रद्धापूर्वक पुखराज की अँगूठी को तर्जनी अँगुली में धारण करना चाहिये ।
धारण विधि रत्न अँगूठी में इस प्रकार जड़ा जाये कि वह त्वचा को स्पर्श करे। ऐसो अँगूठी को Touching ring कहते हैं। अँगूठो शुक्ल पक्ष के किसी रविवार के दिन सूर्योदय के समय धारण करनी चाहिये । धारण करने से पूर्व अँगूठी को कच्चे दूध या गंगाजल में डुबोकर रखना चाहिये । फिर उसको शुद्ध जल से स्नान कराकर पुष्प, चन्दनऔर धूपबत्ती से उसकी उपासना करनी चाहिए
परन्तु सावधान ! मूंगे के साथ पन्ना, हीरा. नीलम, गोमेद और वैदूर्य कभी नहीं धारण करना चाहिए
मंत्र – ॐ बृं बृहस्पतिघे नमः ।
परन्तु पीले पुखराज के साथ हीरा, नीलम, गोमेद और वैदूर्य कभी नहीं धारण करना चाहिए ।
मकर लग्न के लिये बृहस्पति तृतीय और द्वादश का स्वामी होने के कारण अत्यन्त अशुभ ग्रह है। अतः इस लग्न के जातक को पुखराज कभी धारण नहीं करना चाहिये।
कुम्भ लग्न के लिये बृहस्पति द्वितीय (घन भाव) और एका- दश (लाभ) भावों का स्वामी होता है। लग्नेश शनि बृहस्पति का शत्रु है। तब भी बृहस्पति की दशा में पुखराज धारण करने से धन की प्राप्ति, समृद्धि में वृद्धिः सन्तान सुख, विद्या में उन्नति, नया द्धि बल प्राप्त होता है परन्तु क्योंकि बृहस्पति द्वितीय का स्वामी होने के कारण मारकेश भी है, इसलिये मारक प्रभाव भी दे सकता है।
मीन लग्न के लिये बृहस्पति लग्न तथा दशम का स्वामी होने से शुभ ग्रह है। इस लग्न के जातक पीला पुखराज धारण करके अपनी मनो- कामनायें पूर्ण कर सकते हैं। बृहस्पति की महादशा में इसका धारण विशेष रूप से हितकारी होगा। यदि पुखराज नवम के स्वामी मंगल के रत्न मूंगे के साथ धारण किया जाये तो और भी उत्तम फल प्राप्त होगा ।
पुखराज सोने की अँगूठी में जड़वाना चाहिये । श्रेयस्कर यही होगा कि यह कार्य बृहस्पतिवार जाये । अपनि वजन के अनुसार 10 वां हिसा पर रत्ती जैसे कि 60 KG वजन हो तो 6 स्ती धारण करना चाहिए विधि अनुसार उपासनादि करके तथा १६००० को सम्पन्न किया नहीं होता । अच्छा कुछ का मत है कि हमारी बताई हुई निम्नलिखित मन्त्र का जप करके किसी शुक्ल पक्ष के बृहस्पतिवार को सूर्यास्त से एक घंटे पूर्व श्रद्धापूर्वक पुखराज की अँगूठी को तर्जनी अँगुली में धारण करना चाहिये ।
धारण विधि रत्न अँगूठी में इस प्रकार जड़ा जाये कि वह त्वचा को स्पर्श करे। ऐसो अँगूठी को Touching ring कहते हैं। अँगूठो शुक्ल पक्ष के किसी रविवार के दिन सूर्योदय के समय धारण करनी चाहिये । धारण करने से पूर्व अँगूठी को कच्चे दूध या गंगाजल में डुबोकर रखना चाहिये । फिर उसको शुद्ध जल से स्नान कराकर पुष्प, चन्दनऔर धूपबत्ती से उसकी उपासना करनी चाहिए
परन्तु सावधान ! मूंगे के साथ पन्ना, हीरा. नीलम, गोमेद और वैदूर्य कभी नहीं धारण करना चाहिए
मंत्र – ॐ बृं बृहस्पतिघे नमः ।
परन्तु पीले पुखराज के साथ हीरा, नीलम, गोमेद और वैदूर्य कभी नहीं धारण करना चाहिए ।
पुखराज सोने की अँगूठी में जड़वाना चाहिये । श्रेयस्कर यही होगा कि यह कार्य बृहस्पतिवार जाये । अपनि वजन के अनुसार 10 वां हिसा पर रत्ती जैसे कि 60 KG वजन हो तो 6 स्ती धारण करना चाहिए विधि अनुसार उपासनादि करके तथा १६००० को सम्पन्न किया नहीं होता । अच्छा कुछ का मत है कि हमारी बताई हुई निम्नलिखित मन्त्र का जप करके किसी शुक्ल पक्ष के बृहस्पतिवार को सूर्यास्त से एक घंटे पूर्व श्रद्धापूर्वक पुखराज की अँगूठी को तर्जनी अँगुली में धारण करना चाहिये ।
धारण विधि रत्न अँगूठी में इस प्रकार जड़ा जाये कि वह त्वचा को स्पर्श करे। ऐसो अँगूठी को Touching ring कहते हैं। अँगूठो शुक्ल पक्ष के किसी रविवार के दिन सूर्योदय के समय धारण करनी चाहिये । धारण करने से पूर्व अँगूठी को कच्चे दूध या गंगाजल में डुबोकर रखना चाहिये । फिर उसको शुद्ध जल से स्नान कराकर पुष्प, चन्दनऔर धूपबत्ती से उसकी उपासना करनी चाहिए
परन्तु सावधान ! मूंगे के साथ पन्ना, हीरा. नीलम, गोमेद और वैदूर्य कभी नहीं धारण करना चाहिए
मंत्र – ॐ बृं बृहस्पतिघे नमः ।
परन्तु पीले पुखराज के साथ हीरा, नीलम, गोमेद और वैदूर्य कभी नहीं धारण करना चाहिए ।
जो व्यक्ति पुखराज खरीदने में असमर्थ हैं वे बदले में पीला, मोती, पीला जिरकान या सुनैला धारण कर सकते हैं