नीलम
नीलम किसको धारण करना चाहिये? नीलम शनि का रत्न है। जिस कुण्डली में शनि शुभ भाव या भावों का स्वामी होगा उनको नीलम धारण करना शुभ फलदायक होगा। नीलम की पूर्व परीक्षा मान्यता यह है कि नीलम जहाँ एक अत्यन्त शुभ फलदायक रत्न है, वहाँ यदि हानिश्रद प्रमाणित हो तो जातक का एकदम सत्यानाश कर देता है। कभी कभी ऐसा देखा गया है कि किसी कुण्डली के लिये उपयुक्त होने पर भी नीलम धारण करने से हानि हुई है। यह भी मान्यता है कि नीलम अपना लाभ या हानि दो-तीन दिन में दे देता है और कभी-कभी कुछ घंटों में ही अपना शुभ या अशुभ फल दिखा देता है। अतः नीलम को अंगूठी में जड़वाने से पूर्व उसकी परीक्षा कर लेना अत्यन्त आव- श्यक है। इसके लिये नीलम को किसी शनिवार को खरीदकर गंगा- जल या कच्चे दूध और फिर पानी से धोकर, रत्न की विधिपूर्वक उपासना करें। फिर शनि के मंत्र का जाप करके रत्न को एक नीले कपड़े में लपेटें और सूर्यास्त से एक-दो घंटे पूर्व दाहिनी भुजा पर धारण करें। रत्न को इस प्रकार कपड़े में बाँधें कि वह शरीर का स्पर्श न करे। यदि रत्न के धारण करने से भयानक स्वप्न या मन में अशान्ति न हो या किसी प्रकार की दुर्घटना का सामना न करना पड़े या कोई रोग न उत्पन्न हो तो यह समझ लेना चाहिये कि रत्न अनुकूल है परन्तु यह परीक्षा एक सप्ताह तक जारी रखनी चाहिए । यदि किसी भी हानिप्रद बात का अनुभव हो तो तुरन्त रत्न को उतारकर रत्न विक्रेता को वापिस कर देना चाहिए ।
मेष लग्न के लिए शनि दशम और एकादश का स्वामी है। दोनों शुभ भाव हैं. तब भी एकादश भाव के स्वामित्व के कारण शनि को इस लग्न के लिए शुभ ग्रह नहीं माना है। परन्तु हम पूर्ण विश्वास के साथ कह सकते हैं कि यदि शनि द्वितीय, चतुर्थ, पंचम नवम, दशम, एकादश या लग्न में स्थित हो तो शनि की महादशा में नीलम धारण करने से हर दशा में आशातीत लाभ होगा ।
वृषभ लग्न लिए शनि नवम और दशम भावों का स्वामी होने के कारण अत्यन्त शुभ और योगकारक ग्रह माना गया है। इसको नोलम धारण करने से सदा सुख सम्पदा, समृद्धि, मान, प्रतिष्ठा, राज्य कृपा तथा धन की प्राप्ति होगी। शनि की महादशा में यदि नीलम धारण किया जाए तो विशेष रूप से लाभप्रद होगा। यदि नीलम लग्नेश के रत्न हीरे के साथ धारण किया जाए तो और उत्तम फलदायक सिद्ध होगा।
नीलम को शनिवार के दिन पंचधातु या स्टील की अँगूठी में जड़वाकर, विधि के अनुसार उसकी उपासनादि करके, सूर्यास्त से दो घंटे पूर्व मध्यमा अँगुली में धारण करना चाहिए। अपनि वजन के अनुसार 10 वां हिसा पर रत्ती जैसे कि 60 KG वजन हो तो 6 स्ती धारण करना शनि के निम्नलिखित मंत्र की जप संख्या २३,००० है।
धारण विधि रत्न अँगूठी में इस प्रकार जड़ा जाये कि वह त्वचा को स्पर्श करे। ऐसो अँगूठी को Touching ring कहते हैं। अँगूठो शुक्ल पक्ष के किसी रविवार के दिन सूर्योदय के समय धारण करनी चाहिये । धारण करने से पूर्व अँगूठी को कच्चे दूध या गंगाजल में डुबोकर रखना चाहिये । फिर उसको शुद्ध जल से स्नान कराकर पुष्प, चन्दनऔर धूपबत्ती से उसकी उपासना करनी चाहिए
मंत्र-ॐ शं शनैश्चराय नमः
परन्तु सावधान ! नीलम के साथ माणिक्य, मोती, पीला पुख- राज या मूंगा कभी धारण नहीं करना चाहिए ।
मिथुन लग्न के लिए शनि अष्टम और नवम भावों का स्वामी होता है। नवम त्रिकोण का स्वामी होने से यह इस लग्न के लिए शुभ ही माना गया है। यदि शनि की महादशा में यह रत्न धारण किया जाए तो लाभदायक होगा। यदि नीलम को लग्नेश के रत्न पन्ने के साथ धारण किया जाए तो और भी उत्तम फलदायक होगा।
नीलम को शनिवार के दिन पंचधातु या स्टील की अँगूठी में जड़वाकर, विधि के अनुसार उसकी उपासनादि करके, सूर्यास्त से दो घंटे पूर्व मध्यमा अँगुली में धारण करना चाहिए। अपनि वजन के अनुसार 10 वां हिसा पर रत्ती जैसे कि 60 KG वजन हो तो 6 स्ती धारण करना शनि के निम्नलिखित मंत्र की जप संख्या २३,००० है।
धारण विधि रत्न अँगूठी में इस प्रकार जड़ा जाये कि वह त्वचा को स्पर्श करे। ऐसो अँगूठी को Touching ring कहते हैं। अँगूठो शुक्ल पक्ष के किसी रविवार के दिन सूर्योदय के समय धारण करनी चाहिये । धारण करने से पूर्व अँगूठी को कच्चे दूध या गंगाजल में डुबोकर रखना चाहिये । फिर उसको शुद्ध जल से स्नान कराकर पुष्प, चन्दनऔर धूपबत्ती से उसकी उपासना करनी चाहिए
मंत्र-ॐ शं शनैश्चराय नमः
परन्तु सावधान ! नीलम के साथ माणिक्य, मोती, पीला पुख- राज या मूंगा कभी धारण नहीं करना चाहिए ।
कर्क लग्न के लिए शनि सप्तम (मारक स्थान और अष्टम (दुःस्थान) भावों का स्वामी होने के कारण अशुभ ग्रह माना गया है। शनि लग्नेश का मित्र भी है। अतः इस लग्न के जातक को नीलम कभी नहीं धारण करना चाहिए ।
सिंह लग्न के लिए शनि षष्ठ (दुःस्थान) और सप्तम (मारक स्थान) भावों का स्वामी होने के कारण अशुभ ग्रह माना गया है। शनि लग्नेश का शत्रु भी है। अतः इस लग्न के जातक को नीलम नहीं धारण करना चाहिए।
कन्या लग्न के लिए शनि पंचम और षष्ठ भावों का स्वामी है। पंचम त्रिकोण का स्वामी होने के कारण शनि को इस लग्न के लिए अशुभ ग्रह नहीं माना गया है। अतः शनि की महादशा में इस लग्न का जातक नीलम धारण करके लाभ उठा सकता है।
नीलम को शनिवार के दिन पंचधातु या स्टील की अँगूठी में जड़वाकर, विधि के अनुसार उसकी उपासनादि करके, सूर्यास्त से दो घंटे पूर्व मध्यमा अँगुली में धारण करना चाहिए। अपनि वजन के अनुसार 10 वां हिसा पर रत्ती जैसे कि 60 KG वजन हो तो 6 स्ती धारण करना शनि के निम्नलिखित मंत्र की जप संख्या २३,००० है।
धारण विधि रत्न अँगूठी में इस प्रकार जड़ा जाये कि वह त्वचा को स्पर्श करे। ऐसो अँगूठी को Touching ring कहते हैं। अँगूठो शुक्ल पक्ष के किसी रविवार के दिन सूर्योदय के समय धारण करनी चाहिये । धारण करने से पूर्व अँगूठी को कच्चे दूध या गंगाजल में डुबोकर रखना चाहिये । फिर उसको शुद्ध जल से स्नान कराकर पुष्प, चन्दनऔर धूपबत्ती से उसकी उपासना करनी चाहिए
मंत्र-ॐ शं शनैश्चराय नमः
परन्तु सावधान ! नीलम के साथ माणिक्य, मोती, पीला पुख- राज या मूंगा कभी धारण नहीं करना चाहिए ।
तुला लग्न के लिए शनि चतुर्थ और पंचम का स्वामी होने के कारण अत्यन्त शुभ और योगकारक ग्रह माना गया है। यह लग्नेश शुक्र का अभिन्न मित्र भी है। अतः इस लग्न का जातक इस रत्न को धारण करके सब प्रकार का सुख प्राप्त कर सकता है। शनि की महादशा में यह विशेष रूप से फलदायक है। लग्नेश शुक्र के रत्नहीरे या नवम भाव के स्वामी बुध के रत्न पन्ने के साथ नीलम धारण किया जाए तो और भी अधिक अच्छा फल देता है।
नीलम को शनिवार के दिन पंचधातु या स्टील की अँगूठी में जड़वाकर, विधि के अनुसार उसकी उपासनादि करके, सूर्यास्त से दो घंटे पूर्व मध्यमा अँगुली में धारण करना चाहिए। अपनि वजन के अनुसार 10 वां हिसा पर रत्ती जैसे कि 60 KG वजन हो तो 6 स्ती धारण करना शनि के निम्नलिखित मंत्र की जप संख्या २३,००० है।
धारण विधि रत्न अँगूठी में इस प्रकार जड़ा जाये कि वह त्वचा को स्पर्श करे। ऐसो अँगूठी को Touching ring कहते हैं। अँगूठो शुक्ल पक्ष के किसी रविवार के दिन सूर्योदय के समय धारण करनी चाहिये । धारण करने से पूर्व अँगूठी को कच्चे दूध या गंगाजल में डुबोकर रखना चाहिये । फिर उसको शुद्ध जल से स्नान कराकर पुष्प, चन्दनऔर धूपबत्ती से उसकी उपासना करनी चाहिए
मंत्र-ॐ शं शनैश्चराय नमः
परन्तु सावधान ! नीलम के साथ माणिक्य, मोती, पीला पुख- राज या मूंगा कभी धारण नहीं करना चाहिए ।
वृश्चिक लग्न के लिए शनि तृतीय और चतुर्थ भावों का स्वामी है। ज्योतिष के सिद्धान्तों के अनुसार शनि इस लग्न के लिए शुभ ग्रह नहीं माना गया है। फिर भी यदि शनि चतुर्थ का स्वामी होकर पंचम, नवम, दशम और एकादश में हो तो शनि की महादशा में यह रत्न धारण किया जा सकता है। क्योंकि शनि और लग्नेश मंगल परस्पर मित्र नहीं हैं- एक अग्नि है तो दूसरा बरफ। अतः हम यही राय देंगे कि इस लग्न के जातक नीलम से दूर रहें तो श्रेयस्कर होगा।
धनु लग्न के लिए शनि द्वितीय (मारक स्थान) और तृतीय भावों का स्वामी होने के कारण इस लग्न के लिए अशुभ ग्रह माना गया है। इसके अतिरिक्त शनि लग्नेश बृहस्पति का शत्रु है। अतः इस लग्न के जातक के लिए नीलम धारण करना ठीक न होगा।
मकर लग्न के शनि लग्न और धन भाव का स्वामी है। इस लग्न के जातक नीलम को सदा सुख और सम्पन्नता प्राप्त करने के लिए धारण कर सकते हैं- वास्तव में उनको नीलम धारण करना चाहिए।
नीलम को शनिवार के दिन पंचधातु या स्टील की अँगूठी में जड़वाकर, विधि के अनुसार उसकी उपासनादि करके, सूर्यास्त से दो घंटे पूर्व मध्यमा अँगुली में धारण करना चाहिए। अपनि वजन के अनुसार 10 वां हिसा पर रत्ती जैसे कि 60 KG वजन हो तो 6 स्ती धारण करना शनि के निम्नलिखित मंत्र की जप संख्या २३,००० है।
धारण विधि रत्न अँगूठी में इस प्रकार जड़ा जाये कि वह त्वचा को स्पर्श करे। ऐसो अँगूठी को Touching ring कहते हैं। अँगूठो शुक्ल पक्ष के किसी रविवार के दिन सूर्योदय के समय धारण करनी चाहिये । धारण करने से पूर्व अँगूठी को कच्चे दूध या गंगाजल में डुबोकर रखना चाहिये । फिर उसको शुद्ध जल से स्नान कराकर पुष्प, चन्दनऔर धूपबत्ती से उसकी उपासना करनी चाहिए
मंत्र-ॐ शं शनैश्चराय नमः
परन्तु सावधान ! नीलम के साथ माणिक्य, मोती, पीला पुख- राज या मूंगा कभी धारण नहीं करना चाहिए ।
कुम्भ लग्न के लिए शनि द्वादश का स्वामी होते हुए भी लग्नेश है। उसकी मूल त्रिकोण राशि लग्न में पड़ती है। अतः मकर लग्न के जातकों के समान इस लग्न के जातकों के लिए भी नीलम एक शुभ फलदायक रत्न है।
मीन लग्न में शनि एकादश और द्वादश का स्वामी होने के कारण इस लग्न के लिए अशुभ ग्रह माना गया है। इसके अतिरिक्त शनि लग्नेश का शत्रु है। तब भी यदि एकादश का स्वामी होकर शनि द्वितीय, चतुर्थ, पंचम, नवम या लग्न में स्थित हो तो शनि की महादशा में नीलम धारण करने से आर्थिक लाभ हो सकता है। परन्तु हमारी राय यही है कि इस लग्न के जातक यदि नीलम न धारण करें तो
अच्छा है।
नीलम को शनिवार के दिन पंचधातु या स्टील की अँगूठी में जड़वाकर, विधि के अनुसार उसकी उपासनादि करके, सूर्यास्त से दो घंटे पूर्व मध्यमा अँगुली में धारण करना चाहिए। अपनि वजन के अनुसार 10 वां हिसा पर रत्ती जैसे कि 60 KG वजन हो तो 6 स्ती धारण करना शनि के निम्नलिखित मंत्र की जप संख्या २३,००० है।
धारण विधि रत्न अँगूठी में इस प्रकार जड़ा जाये कि वह त्वचा को स्पर्श करे। ऐसो अँगूठी को Touching ring कहते हैं। अँगूठो शुक्ल पक्ष के किसी रविवार के दिन सूर्योदय के समय धारण करनी चाहिये । धारण करने से पूर्व अँगूठी को कच्चे दूध या गंगाजल में डुबोकर रखना चाहिये । फिर उसको शुद्ध जल से स्नान कराकर पुष्प, चन्दनऔर धूपबत्ती से उसकी उपासना करनी चाहिए
मंत्र-ॐ शं शनैश्चराय नमः
परन्तु सावधान ! नीलम के साथ माणिक्य, मोती, पीला पुख- राज या मूंगा कभी धारण नहीं करना चाहिए ।
जो व्यक्ति नीलम खरीदने में असमर्थ हो वे बदल में नीला जिर- कान, कटैला (Amethyst) या लाजवर्त (Lapis Lazuli) धारण कर सकते हैं। नीला तामड़ा (Garnet), नीला स्पाइनल था पूर्ण रूप से पारदर्शक और नीले रंग की तुरमली को बदले में धारण कर सकते हैं